बुधवार, 20 अप्रैल 2011

नमस्कार दोस्तों

काफी अरसे तक ब्लॉग पर लिख नहीं पाया, लेकिन ब्लॉग की दुनिया के हलचल बारे में कुछ कुछ पता चल रहा था ,
कुछ व्यक्तिगत कारणों से यह वनवास रहा, लेकिन अब सक्रिय रहने की पूरी कोशिश करूँगा । वस्तुतः मन तो हमेशा और हर विषय पर कुछ - न - कुछ कहना चाहता है , पर घर - परिवार भी देखना है, रोटी भी कमानी है ।

मंगलवार, 30 अक्तूबर 2007

सच्ची श्रद्धांजली

है फूल चढाना काम नही,
होता नही कुछ सिर्फ कहने से।
होगी सच्ची पूजा उनकी,
उनकी बातों पर चलाने से॥

चाहे न मूर्ति बनाओ उनकी,
चाहे न रखो सड़क का नाम।
लेकिन तुम वही सब करना,
जो कर गए हैं वो काम॥

सरकारी अस्पताल (व्यंग्य कविता)

न डाक्टर, न दवाई,
स्वयं बीमार व बदहाल।
रोगी डरता जिसे देखकर,
वही है सरकारी अस्पताल॥

बुधवार, 24 अक्तूबर 2007

सरकारी स्कूल (व्यंग्य कविता)

न भवन, न सामान,
न शिक्षक, न उसूल।
बेमतलब बैठे छात्र जहाँ,
वही है सरकारी स्कूल॥

नेता जी का कुर्सी प्रेम (व्यंग्य कविता)

एक नेता जी,
कुर्सी के प्रेम में,
ऐसे खोने लगे।
शयन कक्ष से,
पलंग हटाकर,
कुर्सी पर ही सोने लगे।।

लोकतंत्र की परिभाषा

आगे गहरा कुआँ,
पीछे गहरी खाई,
किसी एक का चयन ही,
लोकतंत्र है भाई॥